MOVIE REVIEW- 'बा बा ब्लैक शीप'

By: Dilip Kumar
3/26/2018 1:06:27 PM
नई दिल्ली

आप किसी नामी-गिरामी रेस्टोरेंट में डिनर करने जाए, और पहला कौर चखते ही मुंह का स्वाद ही नहीं, मन तक कसैला हो जाए- बा-बा ब्लैक शीप देखते हुए कुछ ऐसा ही महसूस होता है। अन्नू कपूर, अनुपम खेर और के. के. मेनन जैसे एक्टर और ऐसी मनहूस शक्ल वाली फिल्म! बात हाजमोला खाकर भी हजम नहीं होती।दिलचस्प लग रहे एक आइडिये को गुड़ गोबर करने पर अगर कभी रिसर्च हुआ, तो उसमें इस फिल्म को यकीनन केस स्टडी के रूप में शामिल किया जाएगा।

यह कहानी है गोवा में रहने वाले बाबा (मनीष पॉल) की, जिसे एक दिन पता लगता है कि उसका दब्बू बाप चारुदत्त (अनुपम खेर) दरअसल चार्ली नाम का एक कॉन्ट्रैक्ट किलर है। यह काम 12 पीढ़ियों से चल रहा है और अब 13वीं पीढ़ी के वारिस के तौर पर इस काम को आगे बढ़ाने का दारोमदार अब उस पर है। बाबा, ब्रायन मॉरिस (अन्नू कपूर) की बेटी एंजला मॉरिस (मंजरी फडनीस) से प्यार करता है। कहानी में एक भ्रष्ट नेता उत्पल शिवालकर (मनीष वाधवा) भी है, जिसे एक आर्ट गैलरी की मालकिन काम्या (नताशा सूरी) ब्लैकमेल कर रही है। उत्पल के इशारों पर काम करने वाले कुछ अपराधी डैनियल डिकोस्टा (विनीत शर्मा), कमाल (बी. शांतनु) और जमाल (कीर्ति शेट्टी) भी हैं। अब इतने सारे गुंडे हैं तो एक पुलिस वाला भी तो होगा! तो है न! बिना वर्दी वाला ए सी पी शिवराज नाइक (के. के. मेनन)। कहानी इस कदर बे-सिर-पैर की है, कि उसके बारे में इससे ज्यादा बात करने का मन भी नहीं है और यह भी डर है कि आप पढ़ते-पढ़ते ही न पक जाएं, लिहाजा कहानी के ब्यौरे पर यहीं फुलस्टॉप लगाते हैं और आते हैं एक्टिंग पर।

यह बेहद दुखद है कि इस तरह की फिल्म में कई अति प्रतिभाशाली कलाकारों की प्रतिभा को जाया होते देखना पड़ता है। यह भी कह सकते हैं कि इसके एक्टर जो करते हैं, वह एक्टिंग कम, ओवरएक्टिंग ज्यादा लगती है। फिर चाहे वह अन्नू कपूर हों या अनुपम खेर, मनीष पॉल या मंजरी फडनीस। के. के. मेनन की फिल्म में एंट्री राहत का एहसास दिलाती है, पर जल्द ही एहसास हो जाता है कि कचरा लेखन के चलते उनके किरदार का भी सत्यानाश ही हो गया है। हालांकि के. के. में इतनी काबिलीयत है कि वह खुद को ओवरएक्टिंग से बचा ले जाते हैं। एकमात्र एक्टर, जिसकी एक्टिंग फिल्म देखने के बाद याद रह जाती है, वह हैं मनीष वाधवा। दमदार आवाज और अंदाज वाले मनीष एक वॉइस आर्टिस्ट भी हैं। चर्चित हॉलीवुड शृंखला ‘ट्वाईलाइट’ के हिंदी संस्करण में वह जेकब ब्लैक के किरदार को अपनी आवाज दे चुके हैं। फिल्म ‘चार्ली एण्ड दि चॉकलेट फैक्ट्री’ में जॉनी डेप की आवाज भी वही बने थे। टीवी पर हम उन्हें चंद्रगुप्त मौर्य सीरियल में चाणक्य का किरदार निभाते हुए देख चुके हैं। उनमें एक्टिंग के लिहाज से काफी संभावनाएं नजर आती हैं। कुछ दृश्यों में तो वह के. के को कड़ी टक्कर देते नजर आते हैं। गोवा की इस कहानी में किरदारों का पंजाबी लहजा, प्लॉट की विश्वसनीयता को कम करता है। फिल्म के दो गीतों- गल्लां गोरियां और हीर में भी थोक के भाव पंजाबी शब्दों और लहजे का इस्तेमाल है, जो इस फिल्म के लिहाज से उपयुक्त नहीं लगता। गाने कानफोड़ू और उनका फिल्मांकन अति नाटकीय है।

 

 


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