प. बंगाल में शह और मात का खेल

By: Dilip Kumar
3/1/2021 2:44:36 PM
नई दिल्ली

प. बंगाल में चुनाव की पूर्व बेला तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच की जंग हिंसक झड़पों से कानूनी जंग की तरफ बढ़ रही है। केंद्र का सत्ता पर काबिज होने के नाते भाजपा के पास सीबीआई, ईडी, इन्कम टैक्स आदि की शक्तियाम हैं जबकि राज्य की तृणमूल सरकार के पास राज्य पुलिस और सीआइडी है। प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इशारे परर भाजपा के कुछ नेताओं को ड्रग के मामने में लपेटा जा रहा है तो केंद्र सरकार ने कोयला घोटाले में सीएम की बहु को कटघरे में खड़ा कर दिया है। ममता बनर्जी के भतीजे सह सांसद अभिषेक बनर्जी की पत्नी रुजिरा बनर्जी से सीबीआई ने कोयला तस्करी के मामले में दो घंटे तक पूछताछ की है जबकि राज्य पुलिस ने कोकिन बरामदगी के मामले में भाजपा नेता राकेश सिंह को गिरफ्तार कर लिया है। यह इस मामले में दूसरी गिरफ्तारी है। वे अपराध में कितना शामिल अथवा कितना निर्दोष हैं यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि इन मामलों को इस समय उठाने का मतलब है चुनाव को प्रभावित करने की राजनीतिक कोशिश। कोयला तस्करी का और मनी लाउंडरिंग का मामला 2014 से ही चल रहा है। सीबीआई के हाथ पहले भी रुजिरा बनर्जी की गर्दन तक पहुंच सकते थे। लेकिन राजनीतिक लाभ उठाने के लिए सही समय का इंतजार किया जाता रहा।

भाजपा युवा मोर्चा की पर्यवेक्षक और हुगली जिले की संगठन महासचिव पामेला गोस्वामी और उनके मित्र प्रोबिर कुमार डे को कुछ ही दिन पहले 100 ग्राम कोकिन के साथ गिरफ्तार किया गया था जिसकी कीमत लाखों में थी। अगर ये लोग ड्रग सेवन अथवा तस्करी में लिप्त रहे भी होंगे तो निश्चित रूप से यह काम विधानसभा चुनाव के समय नहीं शुरू किया होगा। प. बंगाल की तेज़ तर्रार पुलिस को इसकी जानकारी अवश्य रहीं होगी। जाहिर है कि इस मामले को चुनावी हथियार के रूप में तरकश में संभाल कर रखा गया होगा। यही बात रुजिरा बनर्जी के साथ भी रही होगी। यह आपराधिक मामले कम राजनीतिक ज्यादा बन गए हैं।

ममता बनर्जी को सत्ता से बेदखल कर भाजपा की सरकार बनाने के लिए भाजपा के रणनीतिकार केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत तमाम बड़े नेताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। ममता बनर्जी के खिलाफ भरपूर कीचड़ उछाला गया। उन्हें हिंदू विरोधी के रूप में चित्रित करने में कोई कोर किशोर बाकी नहीं रखी गई। राज्य के भगवाकरण की पूरी कोशिश की गई। दोनों तरफ से हिंसक झड़पों और राजनीतिक हत्याओं का सिलसिला चलता रहा। एक समय तो ऐसा लगा कि पूरी तृणमूल टूट जाएगी और ममता बनर्जी उसमें अकेली रह जाएंगी। लेकिन ममता बनर्जी ने पार्टी की टूट को रोक लिया और भाजपा को हर मोर्चे पर करारा जवाब दिया। उन्होंने भाजपा के हिंदूवाद के जवाब मे बंगाली अस्मिता की लहर पैदा कर दी हैं। चुनाव पूर्व सर्वेक्षण के नतीज़े भी यही बताते हैं कि मुख्यमंत्री के रूप में ममता बनर्जी ही जनता की पहली पसंद हैं और भाजपा चाहे जितना जोर लगा ले रहेगी दूसरे स्थान पर ही।
फरार होने के प्रयास में थे भाजपा नेता
ममता बनर्जी की बहु रुजिरा बनर्जी दोषी हैं अथवा नहीं यह अनुसंधान और न्यायिक सुनवाई का मामला है लेकिन इसमें संदेह नहीं कि उन्होंने न छुपने की कोशिश की न भागने की। सीबीआई की जांच टीम को पूरा सहयोग दिया और बाजाप्ता बताया कि घर पर कब उपलब्ध रहेंगी। पूछताछ के लिए समय दिया लेकिन भाजपा नेता राकेश सिंह दिल्ली जाने की बात कहकर भूमिगत होने का प्रयास कर रहे थे। बंगाल पुलिस ने फोन लोकेशन के आधार पर उन्हें धर दबोचा। इससे पूर्व जब पुलिस उनके घर तलाशी के लिए गई थी तो उनके दो बेटों ने पुलिस को रोकने की कोशिश की पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया था।

और थम गए परिवर्तन रैली के पहिए

भाजपा के चुनावी अभियान में रोड शो और यात्राओं का बड़ा महत्व रहा है। अभी बंगाल में परिवर्तन यात्रा का योजन किया जा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि यह 'परिवर्तन यात्रा' राज्य को घुसपैठ, बेरोजगारी, बम विस्फोटों से मुक्त करने और राज्य में किसानों की स्थिति में बदलाव लाने के लिए है। इन चीजों पर यात्रा के जरिए कैसे रोक लगेगी समझ से परे है। असद्दुदीन ओवैसी की एआइएमएम भी रैलियों के जरिए अपनी पैठ बनाने का प्रयास कर रही है। लेकिन उनके समक्ष समस्या यह है कि उन्हें इसके लिए राज्य की पुलिस से अनुमति लेनी पड़ती है और अनुमति नहीं मिलने के कारण यात्रा और रैली रद्द करनी पड़ रही है। राज्य पुलिस तृणमूल सरकार के अधीन है। ममता बनर्जी वैसे भी बाहर के दलों को बंगाल में गतिविधियां चलाने के खिलाफ हैं। भाजपा ने केंद्र की सत्ता का उपयोग कर अपनी पैठ बनाने की कोशिश जारी रखी है लेकिन दीदी के सामने उसकी दादागीरी चल नहीं पा रही है।

नतीजे बताएंगे असली चाणक्य कौन

प.बंगाल का चुनाव दो रणनीतिकारों के राजनीतिक कौशल की परीक्षा भी है। एक तरफ राजनीति के कथित चाणक्य अमित शाह हैं तो दूसरी तरफ कई चुनावों में अपने कौशल का डंका बजवा चुके प्रशांत किशोर। प्रशांत किशोर ने 2014 में नरेंद्र मोदी के चुनावी अभियान की बागडोर संभाली थी। इसके अलावा कई चुनावों में अपने कौशल का लोहा मनवाया। लेकिन उत्तर प्रदेश के चुनाव में पुलवामा और बालाकोट के सामने कांग्रेस के पक्ष में उनकी रणनीति विफल हो गई। हालांकि पिछले दिल्ली चुनाव में अपने कौशल को पुनस्र्थापित किया। अमित शाह महाराष्ट्र में शरद पवार से रणनीतिक पराजय के बाद थोड़ा धीमा पड़े तो दिल्ली में उसका सारा कौशल हवा हो गया। बिहार चुनाव में प्रशांत किशोर की भूमिका नहीं रही तो जदयू की सीटें घट गईं। अब बंगाल के चुनाव नतीजे बताएंगे कि भारतीय राजनीति का असली चाणक्य कौन है अमित शाह या प्रशांत किशोर। 


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