आर्ट से रंगे करियर का कैनवास

By: Dilip Kumar
9/18/2016 5:26:18 PM
नई दिल्ली

कहते हैं कि हर इंसान में एक कलाकार छिपा होता है। जिसे उभार कर वह सफलता की बुलंदियों को छू सकता है। खासकर कला और सृजनशीलता से भरे क्षेत्र में इसका भरपूर इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर आप को कला और सृजनशीलता से लगाव है तो आप अपने अंदर छिपी इस प्रतिभा को कॅरियर का रूप दे सकते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं फाइन आट्र्स कला सृजन की।

आज कम्प्यूटर की उपयोगिता जैसे-जैसे आट्र्स कला सृजन में बढ़ती जा रही है। वैसे ही फाइन आट्र्स और कमर्शियल आट्र्स के विशेषज्ञों की मांग भी बढ़ती जा रही है। अगर आप सृजनशील हैं और कला से लगाव है तो इस क्षेत्र में कॅरियर बनाना आपके लिए फायदेमंद साबित होगा। इस क्षेत्र में कॅरियर बनाकर आप न सिर्फ दौलत बल्कि शोहरत भी कमा सकते हैं।

फाइन आट्र्स पाठ्यक्रम में नामांकन के लिए अभ्यर्थी को किसी भी विषय में बारहवीं उत्तीर्ण होना जरूरी है। जिसमें जन्मजात कलात्मक प्रतिभा होती है वह अच्छी डिजाइन के जरिए खूब नाम और पैसा कमा सकते हैं। विजुअल आर्ट अर्थात दृश्य कला यानी रचनात्मकता प्रस्तुत करने के पारंपरिक व नवीन माध्यमों का कलात्मक मिश्रण अर्थात अपने विचारों, भावों व संवेदनाओं को विभिन्न प्रयोगों के द्वारा सरलता से आकर्षक बनाकर प्रस्तुत करना।

विजुअल आर्ट के अंतर्गत पेंटिंग, मूर्तिकला, म्यूरल, टेक्सटाइल कला, प्रिंट मेकिंग, कमर्शियल आर्ट, इलस्ट्रेशन, एनिमेशन, टाइपोग्राफी, फोटोग्राफी, छपाई कला, पॉटरी, स्कल्पचर आदि आते हैं। इस विषय से संबंधित कला इतिहास व अन्य विषयों का अध्ययन विजुअल आर्ट पाठ्यक्रम में कराया जाता है। सामान्यत: सभी संस्थानों में यह चार वर्षीय पाठ्यक्रम है।

प्रथम वर्ष में संस्थान में विजुअल आट्र्स के सभी पाठ्यक्रम पढ़ा, जाते हैं। जिसे फाउंडेशन कोर्स कहा जाता है। तत्पश्चात प्राप्तांक व मेरिट के आधार पर तीन वर्षीय स्पेशलाइजेशन कोर्स करना होता है। इसे बैचलर इन फाइन आट्र्स या बैचलर इन विजुअल आट्र्स कहते हैं। आपको और नवीन प्रयोग सीखने हों तो दो वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स, जिसे मास्टर इन फाइन आट्र्स या मास्टर इन विजुअल आट्र्स कहते हैं, कर सकते हैं।

इसके अंतर्गत सामान्यत: गाइड सिस्टम के तहत शिक्षण संस्थान में कार्यरत अध्यापकों से रजिस्ट्रेशन कराकर किन्हीं एक या दो विषयों पर गूढ़ व प्रयोगात्मक अध्ययन करना होता है। बाद में पीएचडी भी कर सकते हैं। सामान्यत: बीएफए या बीवीए करने के उपरांत आप स्कूली स्तर के अच्छे कला शिक्षक, सरकारी संस्थानों में कलाकार व फोटोग्राफर इत्यादि बन सकते हैं।

स्नातकोत्तर या पीएचडी करने के उपरांत सरकारी व प्राइवेट महाविद्यालयध्विश्वविद्यालयों में कला शिक्षक बन सकते हैं जिसमें आप लेक्चरर रीडर व प्रोफेसर तक के पदों पर आसीन हो सकते हैं। विजुअल आर्ट के विभिन्न प्रकार हैं. पेंटिंग : चित्रकला अर्थात पेंटिंग बनाने की कला की सहायता से सम्मानजनक तथा रचनात्मक जीविका चलाई जा सकती है। इसकी शुरुआत स्केचिंग जैसी विधा से करनी होती है।

इसके उपरांत मानव शरीर, प्राकृतिक दृश्यों, स्टिल लाइफ इत्यादि को चित्रित करने की सुंदर कला सीखनी होती है। चार वर्षीय डिग्री कोर्स करने के उपरांत दो वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्सों में चित्रकला के तहत विभिन्न पारंपरिक व नए माध्यमों जैसे कंप्यूटर तक का उपयोग करके उस पर विस्तृत रूप से अपने विषय अनुसार मूर्त व आमूर्त कला का गंभीर प्रयोगात्मक अध्ययन किया जाता है।

ग्राफिक्स कला (प्रिंटमेकिंग) : यह छपाई कला की प्राचीनतम विधि है जिसे प्राचीन समय से लेकर आज तक उचित सम्मान मिला है। हम अपनी रचनात्मक कलाओं का प्रदर्शन पारंपरिक तरीके जैसे जिंक की प्लेट/लाइम स्टोन/वुड/कास्ट/लिनेन एवं सिल्क के साथ विभिन्न धरातलों पर उकेरकर मशीन तथा स्याही की सहायता से पेपरों पर प्रिंट द्वारा करते हैं। वर्तमान में कई नवीन कलाकारों ने इस विषय पर गैर पारंपरिक प्रयोगों के जरिए उच्च कोटि का कार्य करके इसकी प्रामाणिक व जनोपयोगी बनाने का प्रयास किया है।

म्यूरल कला : सामान्यत: इसे दीवारों पर बनाई गई पेंटिंग के रूप में समझा जाता है। दीवारों पर पेंटिंग बनाने से हटकर सोचने व क्रियान्वित करने के ट्रेंड ने इसे बहुआयामी बना दिया है। टेक्सटाइल कला : इसके अंतर्गत सामान्यत: ड्राइंग की गहन जानकारी के अलावा कपड़े पर अपनी कला प्रस्तुत करने के तरीके सिखाए जाते हैं। बांधनी कला अर्थात राजस्थानी शैली की साडिय़ां व दुपट्टे, बनारसी साडिय़ां आदि इस कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इलस्ट्रेशन कला : इलस्ट्रेशन कला अर्थात रेखाचित्र इसके अंतर्गत आते हैं।

वास्तविक रूप में यह धैर्य व समय के उपयोग की कला है, जिससे एनिमेशन फिल्मों इत्यादि में रोजगार की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। टाइपोग्राफी कला : टाइपोग्राफी अर्थात लेखन की कला। इस कला के अंतर्गत अक्षरों की बारीकियां जैसे उनकी बनावट उनकी विशिष्टता व शैली इत्यादि की खोज पर ध्यान दिया जाता है। इस विधि के अंतर्गत छात्र अपनी विशिष्ट लिखावट शैली व नए फॉन्ट ईजाद कर सकते हैं।


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