बुलेट ट्रेन में नहीं दिख रहा 'मेक इन इंडिया'

By: Dilip Kumar
1/18/2018 5:01:59 PM
नई दिल्ली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन परियोजना में उनके ही इकोनॉमिक मॉडल को धक्का लगता नजर आ रहा है. दरअसल, जापान और भारत के बीच हुए अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए जापानी कंपनियां दौड़ में सबसे आगे है. 17 अरब डॉलर की इस परियोजना के लिए जापानी स्टील और इंजीनियरिंग कंपनियों को ठेका मिलने की प्रबल संभावना है. अगर ऐसा होता है तो पीएम मोदी की आर्थिक नीति का महत्वपूर्ण घटक- मेक इन इंडिया को करारा धक्का लगेगा.

इस मामले से जुड़े लोगों ने बताया कि जापान इस परियोजना में फंडिंग कर रहा है. जापानी कंपनियों को रेल लाइन के काम में सप्लाई होने वाली चीजों का 70 प्रतिशत का ठेका मिलना तय है. हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी के कार्यालय ने इस मुद्दे पर टिप्पणी देने से इनकार कर दिया.

इस परियोजना में शामिल जापानी परिवहन मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि दोनों देश अभी भी महत्वपूर्ण घटकों की आपूर्ति के लिए रणनीति तैयार कर रहे हैं. जुलाई में खरीद के लिए योजना के बारे में बताया जा सकता है.

पिछले साल सितंबर में हुए इस समझौते में दो भाग शामिल हैं. पहला मेक इन इंडिया औऱ दूसरा ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी. भारत को इससे देश में विनिर्माण सुविधाएं स्थापित करने की संभावना थी और टेक्नोलॉजी के माध्यम से नौकरियों के सृजन होने की उम्मीद.

पीएम मोदी के सामने 2019 के लोकसभा चुनाव की चुनौती है और देश में करोड़ों लोग बेरोजगार हैं. ऐसे में वो रोजगार उपलब्ध कराने के दबाव में हैं. वहीं इस योजना को लेकर आलोचकों का कहना है कि बुलेट ट्रेन बेकार है औऱ इस धन का इस्तेमाल कहीं और करना चाहिए.

न्यूज18 की खबर के मुताबिक नेशनल हाई स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एनएचएसआरसीएल) के प्रबंध निदेशक अचल खरे ने कहा कि जापान को इस बात को लेकर चिंता है कि दोनों देशों के कल्चर और सिस्टम में अंतर है. यहां का वर्क कल्चर भी जापान से काफी अलग है. एनएचएसआरसीएल वहीं कंपनी है जिसको भारत में इस बुलेट ट्रेन परियोजना के कार्यों को अंजाम देने का काम सौंपा गया है.

खरे ने इस बारे में विस्तार से नहीं बताया लेकिन रेलवे के दो अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर कहां कि जापानी कंपनियों के मुकाबले भारतीय कंपनियां न तो सक्षम हैं और न ही तय समयसीमा में काम करने की क्षमता. इस परियोजना से सीधे तौर पर जुड़े नीति आयोग के एक अधिकारी ने बताया कि इस में भारतीय कंपनियों को शेयर मिलने की बहुत ही कम चांस है.


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